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पायु
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पायु ऋषि
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पायु ऋषी
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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पायु रुशी
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उंचारि चोवुनु चमकल्यारि, फोंडांतु पायु पडताखातरि
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नित्य चमकुवंच्या वाटेरि जाले तरी पायु आदळु फावजाता
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खंचो पायु निसर्ले तरी गांडीं पेट्टु
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पायु आदल्ले तावळि आम्मा उगडासु
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पळळेल्या फाट्टीरि पायु दिवंचो
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वेळु वांकडो आयलो, गाडवा पायु धरलो
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पायुः
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پایُہ
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পায়ু
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ਪਾਯੂ
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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પાયુ
Meanings: 2; in Dictionaries: 1
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ପାୟୁ ଋଷି
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anus
Meanings: 11; in Dictionaries: 9
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arse
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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arsehole
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asshole
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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पायू
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पायू ऋषी
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अश्वथ
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sodomy
Meanings: 8; in Dictionaries: 5
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निदानस्थान - अध्याय ८
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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तत्त्वविवेकाख्यम् - श्लोक २१ - ४०
'सार्थपंचदश्याम्' या ग्रंथात श्रीशंकराचार्यांनी मानवाच्या आयुष्यातील तत्वज्ञान सोप्या भाषेत विशद केले आहे.
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उपस्थ
Meanings: 34; in Dictionaries: 7
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निदानस्थान - अध्याय १२
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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निदानस्थान - अध्याय ७
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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पुराणों में निर्दिष्ट ऋषियों की तालिका
पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट विभिन्न ऋषिवंशों की एवं ऋषियों की तालिका नीचे दी गयी है । इस तालिका में भार्गव, आंगिरस, वासिष्ठ, एवं अन्य ऋषिवंशों में उत्पन्न ऋषियों की नामावलि उनके समकालीनत्व के अनुसार दी गयी है । तत्कालीन राजकीय इतिहास में इन ऋषियों का संभाव्य स्थान कहाँ था, इसकी सूचना प्राप्त करने के लिए इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं की संपूर्ण तालिका इस तालिका के साथ ही दी गयी है । इस तालिका में निर्दिष्ट इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं की नामावलि पौराणिक राजवंशों की तालिका में से पुनरुदधृत की गयी है । See all entries in Hindi Charitra Kosha here.
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भारद्वाज
Meanings: 51; in Dictionaries: 11
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अध्याय १० वा - श्लोक २६ ते ३०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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सहस्त्र नामे - श्लोक ६६ ते ७०
श्रीगणेशाच्या सहस्त्रनामांचे मराठी अर्थ.
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सहस्त्र नामे - श्लोक १५१ ते १५५
श्रीगणेशाच्या सहस्त्रनामांचे मराठी अर्थ.
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शारीरस्थान - अध्याय ५
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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कल्पस्थान - अध्याय ४
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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श्रीगणेशसहस्त्रनाम - श्लोक ६१ ते ७०
विश्वातील सर्व कारणांचे कारण असणारा असा सर्वात्मा , वेदांनी ज्याची महती गायली आहे , सर्वप्रथम पूजनीय असणार्या अशा गणेशाला मी वंदन करितो .
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सहस्त्र नामे - श्लोक १० ते १२
श्रीगणेशाच्या सहस्त्रनामांचे मराठी अर्थ.
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शिवगीता - अध्याय १४
विविध गीतामे प्राचीन ऋषी मुनींद्वारा रचा हुवा विश्व कल्याणकारी मार्गदर्शक तत्त्वोंका संग्रह है।
Gita has the essence of Hinduism, Hindu philosophy and a guide to peaceful life and ever lasting world peace.
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३६
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संकेत कोश - संख्या ३६
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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उत्तरस्थान - अध्याय २५
आयुर्वेदातील अष्टांग हृदय प्रसिद्ध ग्रंथ आहे. याचे रचनाकार आहेत, वाग्भट. या ग्रंथाचा रचनाकाल ई.पू.५०० ते ई.पू.२५० मानतात. या ग्रंथात औषधि आणि शल्यचिकित्सा दोन्हींचाही समावेश आहे.
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श्रीगणेशसहस्त्रनाम - श्लोक १५१ ते १६०
श्लोक १५१ ते १६०विश्वातील सर्व कारणांचे कारण असणारा असा सर्वात्मा, वेदांनी ज्याची महती गायली आहे, सर्वप्रथम पूजनीय असणार्या अशा गणेशाला मी वंदन करितो.
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कालीतंत्र - मनोपूरक रहस्य
तंत्रशास्त्रातील अतिउच्च तंत्र म्हणून काली तंत्राला अतिशय महत्व आहे.
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श्रीविष्णुपुराण - प्रथम अंश - अध्याय २
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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प्रेतकाण्डः - अध्यायः ३२
विष्णू पुराणाचा एक भाग असलेल्या गरूड पुराणात मृत्यूनंतरच्या स्थितीबद्दलची चर्चा आहे, शिवाय श्रद्धाळू हिंदू धर्मीयांमध्ये मृत्यूनंतर जी विविध क्रिया कर्मे केली जातात, त्याला गरूडपुराणाची पार्श्वभूमी आहे.
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श्रीनरसिंहपुराण - अध्याय १
अन्य पुराणोंकी तरह श्रीनरसिंहपुराण भी भगवान् श्रीवेदव्यासरचित ही माना जाता है ।
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श्रीगणेशसहस्रनाम - श्लोक १ ते १०
विश्वातील सर्व कारणांचे कारण असणारा असा सर्वात्मा , वेदांनी ज्याची महती गायली आहे , सर्वप्रथम पूजनीय असणार्या अशा गणेशाला मी वंदन करितो .
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विश्वामित्रसंहिता - दशमोऽध्याय:
विश्वामित्रसंहिता
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श्रीसिद्धचरित्र - अध्याय अठ्ठाविसावा
श्रीपतिनाथ विरचित श्रीसिद्धचरित्र ग्रंथ शके १८०५ (इ.स.१८८३) मध्ये लिहीला.
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